पलायन पीड़ा प्रेरणा' उस अनकहे भारत की गाथा है जो हमारे सामने है पर हमें दिख नहीं रहा या यों कहें कि हम उसके बारे में जागरूक नहीं हैं। कोरोना महामारी में घोषित लॉकडाउन में पलायन करते मजदूरों के दर्द से शुरू इस अनूठी दास्तान में सिर्फ मजदूरों की भूख और पांवों के छालों की कराह नहीं है बल्कि इसमें घर पर बैठे आम भारतीय का दर्द भी शामिल है।लॉकडाउन के बढ़ते चरण के साथ कोरोना की विभीषिका विकराल रूप धारण करती गयी। सड़कों पर भूखे-प्यासे-थके मजदूरों के साथ ही घर में कैद आम भारतीय की पीड़ा में जब भारत के कार्पोरेट घरानों की दयालुता भी शामिल हुई तो प्रेम की इस इस त्रिवेणी ने एक बार फिर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के भारतीय जीवन दर्शन को चरितार्थ करना शुरू किया। ‘सर्वे भवंतु सुखन:’ की सूक्ति पर चलते दर्द भोगते मज़दूरों की मदद को करोड़ों हाथ आगे आये और करोड़ों मुट्ठियां खुल गयीं। इस पीड़ा के इंद्रधनुष में भारत की वो महान सांस्कृ्तिक-सामाजिक एकता का चरित्र प्रतिबिम्बित है और जिसे गढ़ने में इस देश ने सैकड़ों वर्ष लगाये हैं। इस काल में बुद्ध नानक सूर कबीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों को एक बार फिर दुनिया ने भारत भूमि पर परिलक्षित होते हुए देखा।कोरोना के बदसूरत कालखंड को राहत और प्रेरणा की खूबसूरत निगाह से देखती इस पुस्तक में समाहित पचासों घटनाएं ‘अनकहे भारत’ की निर्विघ्न करुणा और प्रेम का दस्तावेज़ हैं।
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