मैं शायर तो नहीं एक ग़ज़ल संग्रह है जिसमें ज़िन्दगी-मौत प्रेम-घृणांरिश्ते-नाते प्यार-मोहब्बत शिकवे- शिकायत क़स्मे-वादे वफ़ा-बेवफ़ाई अमीरी-ग़रीबी के साथ साथ क़ौमी एकता की रचनाएं भी दिखाई देंगी। यह पुस्तक लगभग 150 ग़ज़लों का संकलन है।इस पुस्तक में मन मत्स्तिष्क में उठने वाले विचारों को कवि ने अपने शब्दों में पिरोया है। विषय में विविधता होने के कारण कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार इस ग़ज़ल संग्रह को पढ़ सकता है। मेरी पहली पुस्तक आईना 2006 में प्रकाशित हुई। वैसे तो मेरा ताल्लुक़ शिक्षा के क्षेत्र से है लेकिन साहित्य शिक्षा का पड़ाव है। मेरे मन मस्तिष्क में उठने वाले भावों और विचारों की सुचारु रूप से की गयी अभिव्यक्ति हैमैं शायर तो नहीं मैंने जो पहलू जिस नज़रिये से देखा और भावों का जो प्रवाह निकला वो एक ग़ज़ल संग्रह के रूप में आपके समक्ष है।मेरी ग़ज़लों में सच्चाई और अनोखापन है ये अत्यंत प्रभावशाली हैं इनमें विचारों का का संगीत़ है और सुख दुख की कोमल और कठोर भावनाएं अठखेलियाँ करती हैं। ग़ज़ल पढ़ने वालों को धड़कते दिल की धड़कन सुनाई देगी। जीवन के सुख दुख के तूफ़ानो की कोमल और कठोर भावनाओं की झलक इन ग़ज़लों में साफ़ दिखाई देगी। इन ग़ज़लों में रोशनी भी है ख़ुश्बू भी है। अगर ये कहा जाए कि कि मैं शायर तो नहीं आज़ाद ग़ज़लों का संग्रह है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। डॉ शाहिदा प्रतापगढ़ उ प्र
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