यह एक महिला की आत्मकथा है जो विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करती है और बहुत मेहनत के साथ अपने कुछ लक्ष्यों को प्राप्त करती है। इस पुस्तक में उसके जीवन के कुछ उतार-चढ़ाव व्यकत हैं जो उसके पेशे के साथ-साथ परिवार और जीवन में आने वाले अनुभवों के बारे में हैं। इस लेखन अनुभव के अनुसार वह विभिन्न परिस्थितियों और लोगों की प्रतिक्रिया के प्रति अपने विचार व्यक्त करती है। यहाँ नीचे उसने कुछ पंक्तियाँ भी लिखी हैं जो समाज में कुछ गहरे अर्थों को दर्शाती हैं मेरी गलतियां मुझसे कहो दूसरों से नहीं क्योंकि सुधरना मुझे है उनको नहीं.. करोड़ों की भीड़ में इतिहास मुट्ठी भर लोग ही बनाते हैं वही रचते हैं इतिहास जो आलोचना से नहीं घबराते हैं... मुलाकात जरूरी है अगर रिश्ते निभाने हों वरना लगाकर भूल जाने से पौधे भी सूख जाते हैं। ज़िंदगी के इस रण में खुद ही कृष्ण और खुद ही अर्जुन बनना पड़ता है रोज़ अपना ही सारथी बनकर जीवन की महाभारत को लड़ना पड़ता है। दुनिया के दो असंभव काम मां की “ममता” और पिता की “क्षमता” का अंदाजा लगा पाना। ज़माना भी अजीब है नाकामयाब लोगों का उड़ाता है .. और कामयाब लोगों से जलता है। ईश्वर ने हमें धरती पर एक खाली चेक की तरह भेजा है गुणों और योग्यताओं के आधार पर हमें स्वयं अपनी कीमत उसमें भरनी होती है। हर पतंग जानती है अंत में कचरे में ही जाना है लेकिन उसके पहले उसे आसमान छू के दिखाना है।
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