ये शब्दों का ताना-बाना शायद आपको कभी कविता लगे तो कभी कहानी शायद कभी निबंध लगे तो कभी पत्र और शायद बस इधर-उधर बेपरवाह से बिखरे बहते कुछ अटपटा सा कहते मात्र कुछ शब्द लगे ये कुछ स्वच्छंद रूप से लिखे गये विचार हैं जो इस पुस्तक रूपी छोटे से घर में एक साथ रहते हैं और इन सब को अगर कोई एक चीज़ परस्पर बाँधती है तो वह है- इनका ज़िंदगी से जुडाव. या यूँ कहिए कि.. ये कुछ भाव हैं जो स्याही में डूबे हैं जिंदगी के बदलते मूड और मंसूबे हैं और मेरे प्राणाधार मेरे सदगुरू श्री साई बाबा को मेरा नैवेद्य हैं. और मेरे दिवंगत पापा श्री श्री गोपाल जी को समर्पित हैं. आशा करती हूँ कि बस कुछ इस तरह से मेरी आवाज़ में आपके दिल की आवाज़ मिल जाये कि आप किसी न किसी रचना में एक वाक्कफियत का एहसास कर पायें और अपने चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान ले आयें या आपकी आँख में एक छोटा सा नमकीन समदर उभर आगे या आपके दिल में एक नया ऊर्जा प्रवाहित हो जाये. भला एक लेखक का इसके अतिरिक्त और क्या उद्देश्य हो सकता है।
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