इक्यावन कविताओं से सुसज्जित कविता संग्रह प्रणय-मंजूषा प्रेम के संघर्ष और अंततः प्रेम के मूल प्रकृति ''सृजन'' के महत्व को व्यक्त करती रचना है l प्रेम सामाजिक बंधनों के चक्र में उलझता हुआ निराशा के चरम को स्पर्श कर दीर्घ संघर्ष के उपरांत अंततः अपने मूल प्रकृति ''सृजन'' को किस प्रकार विकास का आधार बना लेता है? समाज में प्रेम के कालिमामय पक्ष (जिद और हिंसा) को हतोत्साहित कर उसके उज्ज्वल पक्ष (सृजन और विकास)को प्रोत्साहित करती हुई यह कविता-संग्रह ''प्रणय-मंजूषा'' जानने का यह अवसर देती है कि प्रेम का वास्तविक स्वरूप स्वार्थअपमानजिद या हिंसा में न होकर त्यागसमर्पणसम्मान और सृजन में ही है l वर्तमान समय में यह अत्यंत प्रासंगिक भी है l वास्तविक प्रेम एक गहरा और निःस्वार्थ एहसास है जो बिना शर्त किसी के प्रति हो सकता है l मुख्य विषय ''प्रेम'' के अतिरिक्त इसमे वात्सल्य भाव विद्यार्थी जीवन के संघर्षकश्मीर और अन्य समकालिक विषयों को भी स्पर्श किया गया है l
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