यह कोई इतिहास ग्रन्थ नहीं है किन्तु इसे पढक़र बुन्देलखण्ड विशेषकर झाँसी को जाना जा सकता है। झाँसी के इतिहास साहित्य संस्कृति कला उद्योग धंधे समाज अर्थव्यवस्था आदि के अनेक पहलू ऐसे हैं जो किसी लिखित दस्तावेज में उपलब्ध नहीं हैं लोकमन में हैं। उन्हें समेटकर संकलित करना ही हमारा लक्ष्य रहा है जिसकी कोशिश हमने की है। लोकमन ने इतिहास से इतर अपने लिए प्रेरक सांस्कृतिक तत्त्वों—साहित्य संगीत कला आदि को अपनी स्मृति का हिस्सा बनाया। राजा लड़ते रहे साम्राज्य बढ़ते-सिकुड़ते और बदलते रहे किन्तु हमारी संस्कृति ज्यों की त्यों अक्षुण्ण रही और इसीलिए वह लोक स्मृतियों में जीवित भी रही। इस पुस्तक के लेखकों ने झाँसी से जुड़ा जो भी वृत्त-पुरावृत्त प्रस्तुत किया है उसे कतिपय काट-छाँट के बाद जस का तस प्रस्तुत किया गया है। लेखकों द्वारा उपलब्ध प्रामाणिकता के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। लेखकों ने अपनी सोच और दृष्टि से सँवारकर जो भी तथ्य उपलब्ध कराए हैं वे इस संग्रह में मूल रूप में प्रकाशित हैं। पश्चिमी सोच से निर्मित मन के लिए ‘मेरी झाँसी’ उपयोगी हो न हो भारतीय सोच से निर्मित मन के लिए अवश्य उपयोगी होगी। बुन्देलखण्ड विशेषकर झाँसी का अतीत और वर्तमान निश्चित ही पाठकों को ऐतिहासिक सामाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक आदि दृष्टि से उर्वर धरती के विभिन्न पहलुओं से अवगत तो कराएगा ही रचनात्मक भी बनाने में अपनी भूमिका निभाएगा ऐसा हमारा विश्वास है।
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