असग़र वजाहत हिन्दी कहानीकारों की भीड़ में शामिल एक दो पाया नहीं बल्कि एक मुक़म्मल शख़्सियत है। कहानी उपन्यास नाटक सिनेमा पेंटिंग तक अपने पंख फैलाये वह सिर्फ़ इंसानी फ़ितरत की बात सोचता है और उसे रचना में रूपांतरित करता रहता है। असग़र की इसी रचनात्मक बेचैनी से निकली हैं ये कहानियां। ‘मेरी प्रिय कहानियां’ के लिए असग़र ने इन्हें खुद चुना है और साथ में अपनी कथायात्रा की एक विस्तृत भूमिका भी खुद क़लमबंद की है।
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