तिब्बतवालों से मैं कुछ ज्यादा निश्चिन्त था क्योंकि मैं जानता था कि वह चार-पाँच सौ बरस पुरानी दुनिया में रह रहे हैं। सिर से हजारों मन का बोझ उतरा-सा गया मालूम हुआ। शायद प्राकृतिक सौन्दर्य कुछ और पीछे ही से शुरू हो गया था लेकिन अब तक मेरी आँखें उसके लिए बन्द-सी थीं अब मैं आँख भर के पार्वत्य-सौन्दर्य की ओर देखता था।—इसी पुस्तक से
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