जब वे वृन्दावन में जीव गोस्वामी से मिलने का प्रयास करती है तो उन महात्मा के द्वारा स्त्रियों से न मिलने का संकल्प जानकर वहाँ भी चुप नहीं रहतीं। जाते-जाते श्रीकृष्ण को सृष्टि में एकमेव पुरुष मानने के कारण मीरा जीव गोस्वामी पर भी व्यंग्योक्ति कसकर जाती हैं कि वृन्दावन में कोई दूसरा पुरुष भी रहता है उन्हें आज पता चला। यह मीरों की दृढ़ मान्यताओं और नश्वर संसार के प्रति उनका मोह रहित होने का एक बड़ा सीधा-सा उदाहरण था। सबसे बड़ी बात यह कि स्त्री को मात्र एक देह के रूप में देखने वाली पुरुष प्रवृत्ति को भी स्वतंत्र चेतना सम्पन्न मीराँबाई की यह एक स्पष्ट चेतावनी थी। यह उनका एक संन्यासी पुरुष द्वारा एक संत स्त्री को भी विश्वामित्र का आसन डोलाने वाली मेनका की तरह देखने और उससे दूर रहने की कमजोर मनोवृत्ति का निर्दय उपहास था। वस्तुतः मीराँ ने अपने युग में अपनी अलग पहचान बनाई। यह उनके जीवन संघर्ष से भी विदित होता है और उनके काव्य से भी ध्वनित होता है। यदि मीरों को स्त्री- अस्मिता का प्रथम स्वर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। वस्तुतः मीराँ से ही भारतीय स्त्री के स्वतंत्र चिंतन की आज से 500 वर्ष पूर्व जो शुरूआत हुई. वह आज के उत्तर-आधुनिक युग में नित नये आयाम ग्रहण कर रही है। मीरों जैसी आस्था मीराँ जैसी भक्ति मीराँ जैसी करुणा और मीराँ जैसा प्रेमभाव जिस मनुष्य में जग जाये वह मनुष्य जीते-जी जीवनमुक्त हो सकता है। मीराँबाई आजन्म इसी प्रयत्न में लगी रहीं। स्त्री-मुक्ति और सामाजिक समरसता ये दो प्रमुख लक्ष्य मीरों के सामाजिक सरोकारों का हिस्सा थे। कृष्ण भक्ति उन सरोकारों की सूत्रधार थी। : *सुधाकर अदीब*
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.