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About The Book
Description
Author
बहुधा जीवन यात्रा में हम अपने आधार अथवा यूँ कहें कि अपने अर्धांग अथवा अर्धांगिनी को समुचित रूप से वह प्राथमिकता नहीं प्रदान करतें हैं जो कि अपेक्षित है एवं एक बार ईश्वरीय विधान के अनुरूप उसके प्रस्थान के पश्चात् वह मात्र स्मृति शेष स्वरुप में ही रह जाता है और रह जातें हैं हम अपनी गैर प्राथमिकताओं के साथ शेष जीवन निर्वहन के लिए और तब यह अनुभव होता है कि हमारा अस्तित्व भी उसी आत्मा के त्याग का परिणाम हैं। यह काव्य यात्रा वस्तुतः इसी क्रम में एक समर्पण है अपने खो चुके आधार के प्रति।। पुनश्च इस काव्य यात्रा में समाज के कुछ ऐसे अनुभवों को भी समाहित किया गया है जोकि हमारे हृदय एवं मन मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालते हैं एवं इस प्रयास में मन को भी समझने की चेष्टा भी समाहित है। आशा है कि यह काव्य यात्रा आपके मन मस्तिष्क को छू कर कुछ सन्देश दे पाए।