साहित्य समाज से अलग नहीं है। साहित्य में समाज का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। साहित्य का उद्देश्य भी समाज के लिए कार्य करना है। साहित्य जहाँ अच्छे कार्यों को प्रचारित व प्रसारित करने का काम करता है वहीं समाज में हो रहे अनुचित कार्यों का अपने तरीके से विरोध भी करता है। आम जीवन में घटित होने वाली सामान्य घटनाओं के बारे में काफी कुछ लिखा जा रहा है। सामान्य मुद्दों से हटकर लिखने का अपना अलग ही आनन्द है। लोगों के विचारों में कार्यों में व व्यवहार में कई अन्तर्विरोध पाये जाते हैं। इन्हीं अन्तर्विरोध के कारण व्यंग्य का प्रादुर्भाव होता है। साहित्य में व्यंग्य भी समाज को दिशा देने का काम करता है। यह आम जन-जीवन पर हो रहे अत्याचार और अनाचार का विरोध करता है। व्यंग्य के रूप में लिखा साहित्य जहाँ पाठक को गुदगुदाता है वहीं वह व्यवस्था की खामियों पर भी करारा प्रहार करता है।
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