“फ्रैंक! नीचे जाकर इस नए एडिशन की कुछ प्रतियाँ ले आओ। देखें इसमें क्या लिखा है।“ सत्येन्दु ने फ्रैंक से कहा। “बिमला जी मुझे खेद है आपकी स्थिति को देख कर पर मुझे लगता है यह स्थिति ज़्यादा देर तक नहीं रहने वाली।“ अदालत में अभियुक्त के रूप में बैठी बिमला को देख कर सत्येन्दु ने कहा। बिमला सत्येन्दु के इस कथन का मतलब नहीं निकाल पाई। “इस अदालत में जो चर्चा हो रही है उससे तो यही अनुमान लगता है कि मामला मेरे एकदम खिलाफ ही जा रहा है।“ बिमला ने जवाब दिया। बिमला को एस्कॉर्ट कर रहे पुलिस जवान ने उसे बातचीत न करने का अनुरोध किया। अदालत लगने वाली थी। अनुराग सिगरेट के बट को फेंकता हुआ अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ा। उसे लग रहा था कि आज उसने सत्येन्दु से कल की हार का बदला ले लिया है। उसकी चाल बता रही थी कि उसे लग रहा था कि वह बिमला को सज़ा दिलाने में सफल होगया है। तभी फ्रैंक ने कमरे में प्रवेश किया। उसके हाथ में अखबार की दो प्रतियाँ थीं। उसके चेहरे पर हैरत के भाव थे। “उन्हें लाशें मिल गई हैं।“ चिल्लाते हुए फ्रैंक सत्येन्दु की तरफ बढ़ा। सत्येन्दु ने फ्रैंक से वे अखबार ले लिए। उन्हें उसने इस प्रकार फैलाया ताकि अनुराग अखबार में छपी खबर की हेडलाइन को देख सके। “धनवानों का महल मुर्दों में भी धनी” यह हेडलाइन बहुत मोटे-मोटे शब्दों में अखबार में छपी हुई थी। नीचे कुछ छोटे शब्दों में लिखा हुआ था “मनीष और उसकी पत्नी की लाशें देवेंद्र के घर में हो रहे गैरज के निर्माण के फर्श से बरामद।”
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