किसी ने कहा है कि ''अगर हम वर्तमान में खड़े होकर अपना भूतकाल देखे तो जीवन में घटी घटनाओं की एक ऐसी सीधी रेखा दिखायी देगी जो जीवन पथ में हो रहे बार-बार विचलन को खींच कर पुनः उसी सीधी रेखा से मिलाती हुई नजर आएगी और यही सीधी रेखा ही हमारा भाग्य है''। कर्मवादियों के विपरीत हम इस विचार पर कह सकते हैं कि जीवन की सफलत और असफलता को जबरदस्ती भाग्य का परिणाम बताने का भाग्यवादियों का यह एक अच्छा तरीका है। मगर इतना तो सत्य है कि सभी के जीवन में एक ऐसी सीधी रेखा होती जरूर है। मेरे जीवन में भी लेखन कार्य के लिए ऐसी ही सीधी रेखा बनने की शुरुआत तब हुयी जब में बहुत छोटा था किंतु खाने-कमाने के अटल सिद्धांत ने मुझे उस रेखा से विचलित कर दिया किंतु आज जब में उस छोटी रेखा को देखता हूँ तो वह रेखा मेरे वर्तमान और भूत को 180 अंश के कोंण पर एकदम सीधे मिलाती हुई नजर आती है। मेरी जीवन यात्रा आगरा शहर के एक गाँव से प्रारंभ होकर देश की राजधानी दिल्ली में अपना पड़ाव डाल चुकी है और आधुनिक भौतिक सामाज का प्रेम एवं सम्मान प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है। मेरा लेखन कार्य इसी प्रयास का एक हिस्सा भर है। अतः इस उपन्यास को पढ़कर पाठकों की प्रतिक्रियाएं ही मेरे जीवन की उस सीधी रेखा की दूरी तय करेंगी।
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