मन के भीतर उमड़ते-घुमड़ते भावों जज्बातों या भीतरी संवेदनों को कविता के रूप में शब्दबद्ध करना निश्चय ही एक जटिल कार्य है । पलभर के भटकाव से ही भाव हाथ से फिसल जाता है फिर लाख जतन करने पर भी पकड़ में नहीं आता । कुछ सोचा हुआ छूट जाता है और जो पहले कभी सोचा ही नहीं होता वह अनायास ही दिमाग में कौंध कर अपनी जगह बना लेता है । भावों की इस गफ़लत या उधेड़बुन में एक ऐसी रचना बनकर हमारे सामने खड़ी हो जाती है कि हमें स्वयं ही विश्वास नहीं हो पाता कि इसका सृजन हमारे ही अंतर्मन से उपजे आवेगों के फलस्वरूप हुआ है । ऐसे ही जाने-अनजाने कब मन में भाव संकुलित हों उनसे नव अंकुर प्रस्फुटित होते रहें शब्द-रूप में पुष्पित-पल्लवित होते रहें और आज वे रंग-बिरंगे पुष्पों के रूप में अपनी भीनी-भीनी मधुर सुवास से मेरे मन-उपवन को महका रहे हैं । किंचित भाव-सुमनों से निर्मित पुस्तकाकार यह पुष्प-गुच्छ आप जैसे सहृदय सुधिजनों के करकमलों में समर्पित करते हुए मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है । दिन भर की दौड़धूप तरह-तरह के झमेलों जीवन के कटु-तिक्त अनुभवों व संघर्षों से जूझते-तपते मन-मानस पर रात के आगोश में तन्हाई के पलों में अपनी शीतल चाँदनी से मेरे थके-हारे मन पर अपनी मधुरता का नेह-संसिक्त स्निग्ध लेप लगाता चाँद दूरस्थ होते हुए भी मुझे निहायत अपना सा जान पड़ता है । शायद यही वजह ही कि मेरी कविताओं में वह अनायास ही बेधड़क चला आया है और छा गया है रोशनी बनकर मेरे मन पर दुखों के सघन तिमिर को लीलता हुआ । रात के साये में सुदूर गगन में जगमगाता वह चाँद प्रेरक है मेरा प्रेरणा है मेरी । जो आज वह साथ न होता तो मेरा यह लघु अस्तित्व कब का अंधेरों में विलीन हो गुम हो गया होता !
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