ना जाने ये कैसी याचना है उस प्रीतम से जिससे अलग हो जाने की कल्पना ही असह्य है । वाकई क्या प्यार इंसान को इतना कमजोर बना देता है? शायद... मगर कभी कभी आपकी यही कमजोरी आपके सामने आपकी मजबूती बनकर खड़ी हो जाती है । जहाँ तक मैंने मुक्ता जी को समझा है तो यही पाया है कि वक़्त के थपेड़ो नें उन्हें आत्मस्वालम्बी ही नहीं बल्कि एक सशक्त नारी के रूप में स्थापित किया है । मुक्ता टोप्पो जी की ये पहली काव्य संग्रह है अक्सर रचनाएं अतुकांत हैं कहीं कहीं शब्दों की पकड़ कमजोर होती नज़र आती है मगर फिर भी वो अपने भावों को पूर्ण रूप से व्यक्त करने में सफल रही हैं । हर लेखक की तरह उन्हें भी अपनी इस काव्य संग्रह से काफी उम्मीदें है और इसमें कोई शक नहीं कि ये पठनीय है ।
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