प्रस्तुत पुस्तक एक आरोही साहित्यकार का कथा-संग्रह है जो साहित्य के तख्त-ताउस में नगीना बन कर युग-युगान्त तक एक वृत्त-प्रकाश होने की बजाय गतिशील सामाजिक विकारों और आस्थाओं से बन रहे मानस की कला-साधक प्रक्रिया है। इसका तथा ऐसे तमाम कथा संग्रहों का एक अलग मूल्य है जो उन संग्रहों से निश्चय ही कीमती है जिनका निर्माण स्थापकों की समय-काटी अथवा लक्ष्मी पूजक योजनाओं से होता है। कला का आधार अगर जीवन काअनुभव है तो वह प्रस्तुत संग्रह में न्यून नहीं; अगर कला की काया अनुभवों की संस्कारगत प्रक्रिया है तो वह यहाँ दया का पात्र नहीं । कलाकार जिन्दगी का ईमानदार पहरुआ होता है और ईमानदारी का वह बल और चौकस द्रिष्टि लेखक में है।
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