दो शब्द पाठकों सेबीस साल पुरानी बात है चार बंगला के एक कॉटेज में .. एक लड़का राजस्थान से अपनी पोटली में सपनो को रोटी और अपनो के प्यार की चटनी बांध के लाया था .. दिमाग की फैक्ट्री में प्रोडक्शन बहुत था .. वहीं कहीं इस सफ़र ने जन्म लिया ।वो कोई और ही था जो ऐसी गुस्ताखी कर सका .. आज से बिल्कुल अलग।आज वाला इसे छापने की गुस्ताखी कर रहा है ।मैं कुणाल वसुंधरा सिंह आपके सामने अपनी सन् 2000 के आस पास की रचना रख रहा हूं ।आशा करता हूं अपनी सी लगेगी ।इस किताब 'सफ़र' में एक लम्बी.. बहुत लम्बी.. कविता मिलेगी।
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