Musafir hoon Yaaron


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About The Book

घूमने से तन और मन दोनों को ही शान्ति मिलती है । घूमने से व्यक्ति के ज्ञान में भी वृद्धि होती है । प्राचीन भारत में तो शिक्षा का यह एक प्रमुख अंग था । इतना अवश्य है कि व्यक्ति को निरुद्देश्य नहीं भटकना चाहिए । मेरी इन अधिकांश यात्राओं का प्रयोजन कोई प्रवेश परीक्षा रहती थी या इन्टरव्यू रहता था या नौकरी या फिर शोध रहता था । मेरी पूर्व प्रकाशित पुस्तक सन् 1857 का गद़र एवं अवध का रण शोध के क्षेत्र में की गयी यात्राओं का ही परिणाम है । मेरी तमाम यात्रायें तो ईश्वर के प्रति मेरी आस्था के चलते भी हुईं हैं जिसकी झलक आपको इस पुस्तक में मिलेगी । अपने उत्तर प्रदेश में ही तमाम ऐसे धार्मिक तथा पर्यटन स्थल मौजूद है कि आपको और कहीं बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं है । वैसे तो घूमने के लिए दुनिया भी कम है I लोग चाँद और तारों की भी सैर करना चाहते है और कर भी रहें हैं । मेरा ऐसा मानना है कि घूमने का सीधा सम्बन्ध आर्थिक स्थिति एवं अपनी रुचि पर भी निर्भर करता है ।
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