Naaree Ke Vibhed Vedana Vidroh Vijeta Ka Rupak

About The Book

लैंगिक रुढ़िवादिता व लिंग-उन्मुख पूर्वाग्रह महिलाओं के लिए अवरोध पैदा करते हैं। एक महिला के रुप में पूर्वाग्रह की शिकार महिलाओं को उन अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा जो उन्हें आज मिलते हैं। महिलाओं को न्याय के साथ पुरुषों के समान भागीदारी न केवल समाज व सत्ता में बल्कि क़ानून व नीतियों में निर्णय लेने एवं लागू करने में उनकी संपूर्ण भागीदारी एवं वास्तविक अधिकारिता आवश्यक है साथ ही उसकी सार्वजनिक मान्यता भी जरुरी है। संविधान द्वारा सुरक्षा और भारतीय महिलाओं द्वारा किए गए प्रयासों से उन्होंने समाज में सम्मानजनक स्थान अर्जित किया है। क़ानून ने अधिकार तो प्रदान किए परन्तु जब तक समाज की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा समाज खुद से महिलाओं के महत्व व भूमिका के प्रति अनुग्रहित महसूस नहीं होता है कागजी अधिकार महिला को सम्मान एवं सशक्तिकरण प्रदान नहीं कर पाएंगे। सोचिए करोड़ों कन्या भ्रूणों का गर्भपात न होता नवजात कन्याओं को मारा न गया होता धार्मिक कारणों से लिंग विभेद न होता दहेज दुष्कर्म तेज़ाब आदि का शिकार हो महिलाओं की हत्या न होती तो आधी से ज्यादा आबादी महिलाओं की होती। भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में सुधार एवं तेजी से आगे बढ़ने की दिशा में मानव संसाधन के रुप में करोड़ों महिलाओं का श्रम देश के विकास में संलग्न हुआ होता तो भारत न केवल विकसित देश होता बल्कि सोने की चिड़िया कहलाता विश्व गुरु बन सकता था। पुस्तक ‘सिहरन’ सामाजिक विभेद के दंश से आहत नारी के विभेद उसकी वेदना उसका विद्रोह एवं विजेता बन कर उभरने को स्थापित करती है रुढ़िवादिता को नकार कर समाज एवं देश के सर्वांगीण विकास में संघर्षरत नारी के जियालेपन के उल्लेख की एक छोटी सी कोशिश है।
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