जिस पेशा में जो कोई अपना जीवन को गुजरता है- कोई जरूरी नहीं है उनके सुल्तान उसी वृत्ति में अपने को ढाल दो प्रतिरोध पनपता है तो नव जीवन पालक को वर्ग से हटना पड़ता है। विडम्बना को कोई नहीं मानता कि वह जीवन सजाने या बिगाड़ने के लिए आता है। दिव्य सुन्दर नर्तकी में निपुण के आढ़ कमाई का जाल बिछाने में आपका वजूद खोकर मृगतृष्णा के शिकार में अपने निर्माण के विरुद्ध यही काम जब पड़ते हैं-तब तक में हर स्वाति के परिस्थिति बदलते हुए जीवन धारा का बहाव वंश एक तो है आगे अन्धकार पीछे लौटना नामुमकिन और वर्तमान में प्रायश्चित का रंग ग्लानी में डुबाये रखता है- संभालता है उसका दूर दृष्टि पक्का इरादा विलीन मंजिल को हासिल करने में। जहां अदम.....साइस अपने अटूट आत्मबल पर जन जीवन का आशीर्वाद पाकर ......।
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