Nadi Ka Marsiya To Pani Hi Gayega । नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा
shared
This Book is Out of Stock!

About The Book

केशव तिवारी कविता के लिए दृश्य से गुज़रते नहीं उसमें प्रवेश करते हैं। वह विकल करने वाले दृश्य को पहले कविता से बाहर अपनी सामर्थ्य भर बदलने का यत्न करते हैं फिर कविता में लाने का। वह देखे हुए से देर तक विकल रहने वाले व्यक्ति-कवि हैं। यह विकलता इतनी प्रभावी है कि वह कविता में उसे व्यक्त करके भी उससे विमुख या मुक्त नहीं हो पाते हैं। उनके यहाँ चीज़ें अविराम उलटी-पलटी-उधेड़ी-खोली-समझी जा रही हैं और इस क्रमिकता में विकलता और-और गाढ़ी होती जा रही है। वह व्यक्ति-कवि-स्थिति से अभिन्न हो जाती है। कविता में उसे कह देना किसी व्यक्ति-मित्र से उसे कह देने जैसा ही है; लेकिन समस्या यह है कि कविता में उसे बार-बार नहीं कहा जा सकता इसलिए व्यक्तियों-मित्रों से उसे बार-बार कहा जाता है।
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
187
249
24% OFF
Paperback
Out Of Stock
All inclusive*
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE