*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹159
₹200
20% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
मानवीय स्वभाव के अंतस को टटोलती वंदना जोशी की कहानियां सरलता से उतरती हैं और गहरे बैठ जाती हैं। जीवन की सरलता में जटिलताओं को ढूंढ सहसा चौंका देने वाली ये कहानियां आसानी से भुलाई नहीं जा सकतीं। चुनिंदा 11 कहानियों का यह संग्रह यथार्थ ओर रोचकता का अनौखा तालमेल है। उषा के पेट में हास्य गुड़गुड़ाने लगा। हिन्दी साहित्य पढ़ाते हुए प्रोफेसर मार्तंड कहा करते थे- हास्य विसंगतियों से उपजता है। यदि कोई शक्तिशाली किसी दुर्बल से भयभीत प्रतीत हो तो भी हास्य उपजता है। यह शायद वैसा ही कुछ था। संग्रह की पहली कहानी बदलता शब्दकोश रोजमर्रा के संवादों में यूं ही बोल दिये जाने वाले शब्दों की धार और मार को रेखांकित करती हुई स्त्री मन खंगालती है। आशुतोष संशय से लड़के की पैंट को निहार रहा था। जो हर कदम के साथ उतर जाने की धमकी दे रही थी। और लड़के को फ़िक्र थी तो सिर्फ अपनी सुनहरी कलगी की। लघु उपन्यास शैली में लिखी गई कहानी अर्जियांआशुतोष की आंतरिक यात्रा है। कहानी नगर ढिंढोरा जिससे संग्रह का नामकरण भी हुआ है आपसी संबंधों के खोखलेपन में सोशल मीडिया की घुसपैठ को व्यंग्यात्मक शैली में कहती है। आंचल की ओट से कहानी का जिक्र किए बिना इस संग्रह की बात आखिर कैसे खत्म हो! बाल मनोविज्ञान की परतें खोलते हुए कुछ अन्य दबे अनकहे संबंधों को उजागर करती इस कहानी को पाठकों ने बहुत पसंद किया। वंदना जोशी कम परंतु सक्षम लेखन में विश्वास रखती हैं। प्रलेक प्रकाशन से प्रकाशित उनका कहानी संग्रह नगर ढिंढोरा अब पाठकों के लिए उपलब्ध है।