डॉ. अजय आर्यआपका जन्म 6 फरवरी 1978 को रायपुर छत्तीसगढ़ में हुआ। आपने शास्त्री बी.एड.एम.एड.पीएच.डी.(शिक्षा शास्त्र) एम.बी.ए. (मानव संसाधन) के साथ-साथ हिंदी और संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। आपकी शिक्षा दीक्षा विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल प्रभात आश्रम मेरठ उत्तर प्रदेश में पूज्य स्वामी विवेकानंद सरस्वती जी महाराज के चरणों में हुई। आपने अनेक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लेकर भारतीय धर्म संस्कृति तथा वैदिक मूल्यों पर अपने विचार रखे हैं। आपके लेखन तथा सामाजिक कार्यों के लिए आपको अनेक राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय पुरस्कार प्राप्त है। अपने विविध पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे हैं। ‘‘नहीं चाहिए मुझे तरक्की’’ मानवीय संवेदना को प्रतिबिंबित करने वाली कविताओं का संकलन है। इसमें नारी के जीवन का संघर्ष तथा समाज के बदलते परिवेश को चित्रित किया गया है। नारी जीवन की विडम्बनाओं को चित्रित करती हुई आपकी कविताएं यह एहसास नहीं होने देती हैं कि पुरुष प्रधान समाज में ये किसी पुरुष द्वारा व्यक्त किए गए विचार हैं। आपकी कविताएं सोचने को मजबूर करती है। साथ ही साथ कविताएं सार्थक संदेश भी देती है। इसके अतिरिक्त आपकी अनेक पुस्तकें आर्य समाज के सिद्धांतों विचारों और मूल्यों को समझने की व्यावहारिक दृष्टि प्रदान करती हैं। वर्तमान में केंद्र सरकार की नौकरी के साथ-साथ आप आर्य समाज तथा वैदिक मूल्यों के प्रचार प्रसार में संलग्न है।आपकी निम्न पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं-सत्यार्थ के मोती सोलह सोपान वैदिक प्रार्थना धर्म के दस द्वार वैदिक देवों का रहस्य आदर्श गृहस्थ आदि।
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