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About The Book
Description
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ध्यान का अर्थ है, इस क्षण में होना, इस क्षण के पार न जाना।... ध्यान कोई अलग से प्रक्रिया नहीं है। ध्यान जीवन को होशपूर्वक जीने की विधि का नाम है। ध्यान कोई ऐसी बात नहीं कि चौबीस घंटे में एक घंटा निकालकर आप बैठें और कर लें। क्योंकि तेईस घंटे गैर-ध्यान हो और एक घंटा ध्यान हो तो गैर- ध्यान जीतेगा, ध्यान नहीं जीत सकता। तेईस घंटे मूच्र्छा हो और एक घंटा अगर अमूर्च्छा का प्रयोग हो, तो आप कभी बुद्धत्व को उपलब्ध न हो सकेंगे। यह एक घंटा कैसे जीतेगा तेईस घंटे पर?. ओशो. पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिदुः. * समर्पण और रूपांतरण में संबंध क्या है?. * साक्षीभाव है उपाय दमन से मुक्ति का. * भयमुक्ति कैसे संभव है?. * क्या बच्चों को शिक्षा के साथ ध्यान-प्रशिक्षण भी अनिवार्य है?. * क्या मेरे भावावेगों के रेचन के लिए दूसरा जरूरी है?. * शरीर में सब छिपा है- कामवासना भी, समाधि भी