NAI SUBAH

About The Book

रीता सिंह 'सर्जना'बचपन से मुझे कहानियाँ पढ़ना और सुनना बहुत पसंद थी। रात को नाना जी से लोककथाएँ सुना करती थी । फिर मौसी जी भी हमें तरह-तरह की कहानियाँ सुनाया करती थी । और हम बच्चे बड़े चाव से सुना करते थे । थोड़ी बड़ी हुई तो मैंने मां को मोटी- मोटी किताबे पढ़ते हुए देखा । पता चला वह उपन्यास पढ़ा करती थीं । एकदिन जिज्ञासवश मैंने एक उपन्यास पढ़ ली । मुझे अच्छा लगा। मेरी माँ सामाजिक जासूसी और डाकुओं के उपन्यास पढ़ा करती थीं । स्कूल खत्म कर जब कॉलेज में पढ़ने गुवाहाटी आई तो पहली बार 'नेपाली साहित्य' जगत से मेरा परिचय हुआ। पढ़ने की शौकिन तो मैं थी ही । मेरा मन भी एकदिन लेखन की ओर मुखातिब हुआ। कवि नव सापकोटा अंकल जी की प्रेरणा से मैंने कविता लिखना शुरु किया। मगर मुझे तो कहानी पसंद थी । मैं अक्सर सोचा करती थी जो कहानियाँ हम पढ़ते हैं क्या मैं भी लिख सकती हूँ? और एकदिन सच में ऐसा हुआ मैं 'पूर्वांचल प्रहरी' समाचार-पत्र के प्रतिष्ठान में कविता देने गई थी । कविता देकर जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तभी मैंने रविकांत नीरज जी को ऊपर की ओर आते हुए देखा । वे उप-संपादक थे । मैंने उन्हें अभिवादन किया । उन्होंने पूछा-कैसे आना हुआ? मैंने कहा कविता देने आई थी । यह सुन वे अचानक बोले- कविता ही क्यों कहानी क्यों नहीं? मैंने कहा –मुझे लिखनी नहीं आती । प्रतिउत्तर में उन्होंने कहा- जरुर लिख सकोगी । एक कहानी लिखकर लाओं । जैसे वें मेरे लिए प्रेरणा बनकर आए हो । मैंने भी प्रेरणा पाकर एक कहानी लिखकर उन्हें दिखाई ।एक ठहरा हुआ पल जिसे पढ़कर वे बोले -तुम कहानी लिख सकती हो । मैं पास हो गई । इस तरह वे मेरे मार्गदर्शक गुरु बन गए और मैं कहानियों की तरफ मुड़ गई । 1994 से इस तरह मेरी कहानी लेखन का सफर शुरु हुआ । मेरे इर्द-गिर्द घूमते अनेक चेहरों के भाव मेरे जेहन के अंदर ऐसे घर बनाते कि जब तक मैं उसे कहानी का रूप नहीं दे देती मेरे अंदर भाव उमड़ते रहते । मुझे सच में कहानी लिखने में आनंद आने लगा था । जब आप अपनी पसंदिदा काम करें और मार्गदर्शन भी मिले तो फिर क्या कहने । मैं कहानी लिखने लगी । गुवाहाटी के समाचार पत्रों में प्रकाशित होने लगी । प्रोत्साहन मिलता गया । 1996 में पहली बार मेरी तीन कहांनियों के ऊपर श्री मारवाड़ी हिंदी पुस्तकालय द्वारा चर्चा रखी गई । केन्द्रीय निदेशालय द्वारा हिंदीत्तर नवलेखको के आयोजित नवलेखक शिविर के लिए मेरी तोहफा कहानी का चयन होना और सन् 1997 में शिविरार्थी के तौर पर गोवा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना तथा कहानी लेखन के बारे में मार्गदर्शक गुरुजनों से सीखना सच में मेरे लिए एक बहुत अच्छा सुअवसर था । कई लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं कब लिखती हूँ? मेरे लिए कहांनियाँ लिखने के लिए विशेष समय नहीं होता । मां शारदे की कृपा से मैं बचे हुए खाली समय का सदुपयोग करके लिखती हूँ । कई कहांनियाँ मैंने एक ही सीटिंग में पूरी की है । कई रचनाएँ मैंने खाली समय में ऑफिस में भी पूर्ण किया है और मेरा पहले पाठक मेरे कार्यालय के सहयोगी होते या फिर घर में मेरे भाई बहन । इस संग्रह में 1994 से लेकर 2018 तक लिखी गई मेरी 17 कहानियाँ संग्रहित है । ये कहांनियाँ कई राज्यों के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हो चुकी है । लेकिन पुस्तककार के रूप में यह मेरा पहला कहानी संग्रह है । जो नई सुबह के रूप में आप सबके समक्ष प्रस्तुत है । हिंदीत्तर लेखिका होने के कारण इन कहांनियों में कुछ क्षेत्रियता का प्रभाव का दर्शन अवश्य आपको देखने को मिलेगा । मेरे कई मित्र अक्सर कहते थे कि आप बरसों से लेखन कार्य कर रही हैं तो फिर आपकी एक भी पुस्तक क्यों प्रकाशित नहीं हो पाई ? इस प्रश्न के उत्तर में मैं उनसे यहीं कहती थी कि जीवन में जो भी होता है उसका उचित समय निर्धारित होता है । मेरा मानना है कि लेखन में धैर्यता और परिपक्कता होनी बहुत जरुरी है । देर से प्रकाशित करने के लिए मुझे अपनी त्रुटियों पर ध्यान देने का मौका मिला । मैंने इन कहानियों का यथा संशोधन भी किया है । फिर भी कही न कही कुछ त्रुटियां दृष्टिगोचर हो सकती है । आशा है आप अपना बहुअमूल्य समय देकर मेरा मार्गदर्शन करेंगे ।आभार के दो शब्द....मेरी कहांनियों को पुस्तककार देने की बात जब मैंने ग्वालियर साहित्य संस्थान के अध्यक्ष. परम आदरणीय डॉ.भगवान स्वरूप चैतन्य सर जी से कही और अपनी इच्छा जाहिर करते हुए भूमिका लिखने का निवेदन किया तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर आशीर्वाद स्वरूप भूमिका लिखकर मुझे दिया । इसके लिए मैं सर जी के प्रति विशेष रूप से आभार प्रकट करती हूँ । मुझे स्नेह देने वाले स्वर्गीय डॉ. लाल श्रीवास्तव सहाय 'लाल' सर जी का भी बहुत आभारी हूँ जिन्होंने न केवल मुझे शुभकामनाएँ भेजीं बल्कि स्व इच्छा से इस संग्रह के लिए 1500/- रूपये का सहयोग राशि भी प्रदान किया था । मेरे गुरुवर डॉ. भगवती प्रसाद निदारिया जी नवलेखक शिविर में एक मार्गदर्शक गुरु के रूप में गोवा में मिले थे । जिन्होंने मुझे सदैव प्रोत्साहित और मार्गदर्शन किया है । इस संग्रह हेतु आशीष स्वरूप उन्होंने अपनी शुभकामनाएं भेजीं । मैं उनके प्रति सादर आभार प्रकट करती हूँ ।मेरे गुरुवर आदरणीय रविकांत नीरज जी के प्रति विशेष रूप से सादर आभार प्रकट करती हूँ जिन्होंने मुझे विश्वास दिलाया है कि मैं कहानी लिख सकती हूँ।डॉ. रवि कुमार गोंड़ सहायक प्रोफेसर (हिंदी) बद्दी शिमला हिमाचल प्रदेश में शुभाशंसा लिखकर मुझे भेजा। इसके लिए मैं उनका भी आभार प्रकट करती हूँ।हमारे पूर्वोत्तर हिंदी साहित्य अकादमी की सुलेखिकाएँ शिलोंग से आदरणीया डॉ.अनीता पंडा जी असम से डॉ.रुनु बरुआ जी और मणिपुर से डॉ. गोमा देवी शर्मा जी के प्रति हृदय से आभार प्रकट करती हूँ । जिन्होंने प्यारी-सी शुभकामनाएँ भेजकर मुझे बहुत प्रोत्साहित किया और मेरा मार्गदर्शन भी किया है ।सुश्री पूजा सुनुवार के प्रति आभार प्रकट करती हूँ जिसने मेरी कहानी संग्रह के लिए मुखपृष्ठ चित्रांकन किया ।‘नई सुबह’ मेरा प्रथम कहानी संग्रह है जो आप सभी के अवलोकनार्थ सादर प्रस्तुत है । आशा है इन कहानियों को पढ़ने के बाद आप अवश्य कुछ न कुछ जानकारियाँ प्राप्त कर सकेंगे।धन्यवाद सहितरीता सिंह 'सर्जना'तेजपुर असम29 नवंबर2021
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