डॉ. महेन्द्र शर्मा मधुकर जी की ये आठवीं पुस्तक नई उमंग उनकी अपने कार्य के प्रति दृढ़ इच्छाशक्ति लगन और मेहनत को उजागर करती है । शर्मा जी ने अपनी रचनाओं में जहाँ व्यक्तिगत अनुभूतियों को उकेरा है वहीं समाज से भी अपना रिश्ता कायम किया है । यह पुस्तक आदरयुक्त नायाब चमत्कारिक एवं अलंकारिक शब्दों के प्रयोग द्वारा रचित ग्यारह गीत दो सौ एक मुक्तक चालीस दोहों का संकलन है । मधुकर जी का काव्य तुकान्त व तालपक्ष से पूरा संगीतमय है व रूहानी सच को स्पष्ट करता है । सामान्य व्यक्ति की भाँति कवि ने अपने और जगत के सभी प्रभावों समस्याओं असंगतियों परम्पराओं और रूढिय़ों के प्रभाव को आत्मसात करते हुए अपने जीवन संघर्ष को उकेरा है । प्रेम निराशा आत्मीयता द्रोह आदि के प्रभाव को लेकर कविताओं को सहज भाव से प्रकट किया है । अधिकांश भाव विविध छन्दों का आश्रय लेकर अभिव्यक्त हुए हैं अध्यात्मिक मंडलों में विचार करने वाले महापुरुषों ने सहज भाव से जो कहा वह काव्य बन गया कविता बन गई उसी प्रकार डॉ. महेन्द्र शर्मा मधुकर ने अपने अनुभवों से अपने विचारों से आध्यात्मिक अनुभव के प्रखर भाव को अपनी कविताओं में लाकर एक उदाहरण पेश किया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि शर्मा जी की रचनाओं में छन्दों की जो विशेषताएँ हैं उनका पालन करते हुए विषय वस्तु की दृष्टि से अलग-अलग जीवन अनुभवों को रेखांकित होती हैं ।
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