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About The Book
Description
Author
“अपमान का घाव वह घाव है जिसके लगने से प्राण नहीं निकलते परन्तु शरीर प्राणहीन हो जाता है। नरदुर्ग ऐसे ही अपमानित राजा की कथा है जिसमें अपमान का प्रतिशोध अत्यधिक बढ़ जाने से पूरे दुर्ग को नष्ट हो जाना पड़ता है। दास जीवन नरकीय जीवन है। इससे उबरने के लिये किए गए संघर्ष की कथा है नरदुर्ग । उपन्यासों की श्रृंखला में यह उपन्यास इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि इसमें युद्धनीति को विस्तार से दर्शाया गया है। छोटे-बड़े दुर्ग लड़ते झगड़ते रहते । दुर्ग की रक्षा और दुर्गों का सीमा विस्तार सर्वोपरी था। दुर्गों की सुरक्षा के लिये तरह-तरह के परकोटे बनाए जाते थे। दुर्ग के चारों ओर गहरी खाई खोद कर उसमें पानी भरकर घड़ियाल मगरमच्छ एवं अन्य विषैले जानवरों को छोड़ा जाता था। दीवारों पर हमेशा चौकसी रखी जाती थी। यह ऐसे ही दुर्ग की कथा है जो अपने वचनों के पालन में मित्र दुर्ग जलदुर्ग के खोए हुए अस्तित्व को गिरीदुर्ग से वापस दिलाने के लिये स्वयं के दुर्ग का भविष्य ख़तरे में डाल देता है। मित्रता की अनूठी उपमा का पाठकों के सम्मुख विस्तार पूर्वक चित्रण करते हुए दुर्गों की रहस्यमयी कथाओं को उजागर किया गया है। चन्द्रभान ‘राही’ किस्सागोई की कला में माहिर हैं। यह पुस्तक पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि कोई किस्सा सुनाता जा रहा है और बात में से बात निकलती जा रही है। कथा कहते हुए वे इतने विस्तार में चले जाते हैं कि पाठक चमत्कृत हो जाता है। वे पात्रों का चरित्र चित्रण उनकी भेष-भूषा उनके संवाद के माध्यम से कथा को उसी काल विशेष में ले जा कर छोड़ते हैं।