Nari : Sthiti Sangharsh aur Chunautiyaan
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मृदुला गर्ग के अनुसार स्त्री विमर्श पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है परंतु स्त्री विमर्श के सिद्धांत गढ़ने से पहले हमें स्त्री अनुभव पर गहराई से सोचना चाहिए। उनके अनुसार रचना के सूध् अनुभव में मिलते हैं विमर्श में नहीं और विमर्श के सूध् अनुभव जन्य रचना से निकलते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि विमर्श रचना से ही विकसित होता है रचना पहले होती है। इस किताब में हिंदी साहित्य जगत के अनेक साहित्यकारों की रचनाओं को शामिल किया गया है। अलग-अलग ध्रातल की कहानियां शामिल की गई हैं। इसमें छोटी बच्ची से लेकर दादी नानी के मन की पड़ताल करती कहानियां है। गृहिणी कामकाजी उच्च वर्गीय निम्नवर्गीयखिलाड़ी घरेलू नौकरानी वेश्यावृत्ति में पफंसी नारी बलात्कार का शिकार बनी औरत दाई आधुनिक फैशनपरस्त रूढियों में जकड़ी यानी नारी के प्रत्येक पक्ष को समझने की कोशिश की गई है। समय के साथ परिवर्तित होती नारी की छवि बदलते सामाजिक मानदंड निर्धरित खांचे और उन खांचों से बाहर जाती नारी । नारी घर में रहे तो कुछ नहीं करती सारा दिन घर में पड़ी रहती है और बाहर निकले तो उसे परिवार भंजक माना जाता है। अपने लिए जगह बनाने की कोशिश करें पैसा कमाएं गहने बनवाए तुड़वाए यहां तक तो ठीक है पर जैसे ही अपनी संपत्ति की सोचे तो खलनायिका हो जाती है । बैकोल रेखा कस्तवार अगर वह नौकरी के लिए घर से बाहर निकले तो बाहर के काम भी संभाले शोषण के लिए तैयार रहें वरना घर की सुरक्षा के साथ मिलने वाले निकट संबंध्यिों के अतिचारों पर चुप्पी साध् ले। नौकरी करें तो सामाजिक पारिवारिक जिम्मेदारियों को आदर्श पढ़ी लिखी बहू मां पत्नी के रूप में भी वह नजर आनी चाहिए। घर के सब काम काज सुघड़ ढंग से निपटाए और तनख्वाह मिलते ही तुरंत घर वालों के हवाले कर दे। प्रस्तुत किताब के अंत में एक छोटा सा कोना विदेशी कहानियों में स्त्री की स्थिति संघर्ष का रखा गया है। हमारे हिंदी साहित्य में बहुत सी अनूदित विदेशी कहानियां मौजूद हैं उनमें से कुछ को यहां शामिल किया गया है। कोशिश यह रही है कि विभिन्न देशों की कहानियों को स्थान दिया जाए उद्देश्य केवल इतना सा कि नारी चाहे भारत में हो चाहे अमेरिका रूस जापान अविकसित देश विकासशील हो विकसित हो या अति विकसित औरत होने का एहसास उन्हें बचपन से ही करवा दिया जाता है बस डिग्री का पफर्क होता है। कहीं कम कहीं थोड़ा ज्यादा । तातियाना तालस्तोय की घेरा ;रूसद्ध क्रीम सॉस (अमेरिका) तमाशा (लेबनान) उन दिनों (फ़्रांस) हेयर बॉल (कनाडा) खानदान में (क्यूबा) नवविवाहित (जापान) टूटे खिलौने (चीन) कुछ कहानियों के नाम लिए जा सकते हैं। किताब में इनके अलावा दूसरे देशों की प्रतिनिधि कहानियों को भी शामिल किया गया है । इस किताब का सकारात्मक पक्ष एक और बिंदु भी है और वह है नारी का विभिन्न सामाजिक आंदोलनों संघर्षों में बढ़-चढ़कर भाग लेना आगे बढना। आसान नहीं रही होगी उनकी राहें। आज की नारी उन सब की आभारी हैं जिन्होंने हमें सीना चैड़ा कर गर्व से सिर उठाकर बोलने की राह दिखाई । हमें अपने इतिहास पर गौरवान्वित होने का अवसर दिया। अंत में मेरा यह छोटा सा प्रयास पाठक वर्ग के सामने है आपकी प्रतिक्रिया ही मेरे लिए आगे बढ़ने में सहायक और मार्गदर्शक होंगी। इस किताब के लेखन में मैं उन सभी बंधुओ मित्रो परिजनों का आभार व्यक्त करती हूं जिन्होंने मेरी हर पक्ष पर सहायता की और प्रोत्साहन दिया।।
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