Nayanon Ki Veethika


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About The Book

‘नयनों की वीथिका’ शीर्षक ही बहुत कुछ बयाँ कर देता है। शायद ही कोई हो जिसने इस वीथिका में विचरण न किया हो। इस कहानी-संग्रह की अधिकतर कहानियाँ इस वीथिका से ही गुजरती हैं। प्रेम के नाना रंग नाना रूप इनमें बिखरे हुए हैं। कहीं वे दीये की लौ की तरह दिपदिपाते हैं तो कहीं आकाश की बिजली की तरह चकाचौंध कर देते हैं। कहीं ऐसा भी होता है कि प्रेम का आलोक सीधे न आकर कहीं से परावर्तित होकर आता दिखता है। यों तो प्रेम किसी भी वय किसी भी परिस्थिति में हो सकता है यह विहित या अविहित हो सकता है लेकिन इसका सबसे मतवाला रूप वह होता है जो बालपन में होता है जिसमें सख्य और प्रेम के बीच एक बहुत ही बारीक-सी रेखा होती है। ‘अमराइयाँ पुकारती हैं’ ऐसी ही एक कहानी है तो ‘अपूर्ण कथानक’ कैशोर प्रेम का वह घाव है जो जीवनभर खुला ही रहता है; और ‘लड़कपन’ की तो बात ही मत पूछिए। स्मृतियों के सागर में एक तपती हुई जलधारा चुपके-चुपके बहती है। ‘पाँच हजार साल पहले का प्यार’ दो सुदूर सभ्यताओं से संबंधित प्रेमियों की वह दास्ताँ है जो अपूर्ण भी है और पूर्ण भी। एक वीणा है जिसके टूट जाने पर भी उसका स्वर बरसों-बरस सागर की लहरों में जा रहा। बाकी कहानियों के भी अपने रंग अपने रूप अपनी छटाएँ हैं।.
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