स्त्री के मन की गहराई समन्दर से कम नही ऐसा कोई गोताखोर नहीं जो इसकी थाह पा सके एक कृष्ण ही हैं जो स्त्री की मर्यादा को समझ व सजो सकते हैं कुछ ऐसे ही मनोभाव इन कविताओं के माध्यम से व्यक्त किये गए हैं समय बदल रहा है पिछले दो दशकों का जो अनुभव है आगे शायद यह स्थिति न रहे स्त्री के मन की पीडा शब्दों में कही गई है यह उसके मनोभाव को समझनें में सहायक होगी इसे अवश्य ही पढना चाहिये।मैं विनीता तिवारी जिला सीधी मध्य प्रदेश मेरी यह कृति नीर भरे नयन कविताओं का संकलन है जहाँ मैने स्त्री के उन वक्तव्य को लिखने की कोशिश की है जो शब्द मुंह से न निकलकर आँसुओं के रूप में निकल जाते हैं उन्हीं आँसुओं को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है। संसार में ऐसे कोई शब्द नहीं हैं जो एक स्त्री के आँसुओं की नमी को कम कर सके। ही सीता की पीर हो यां द्रोपदीं की चीर लो घाव तो दाव हैं जो कभी मिट नहीं पाते हैं किस्से बहुत हैं नारी के कुछ कहे कुछ अनकहे रह जाते । दरिया किसी को दुबोता नहीं लोग स्वयं उत्तके पास जाते हैं औरत अपना दुख छिपाती है लोग स्वयं ही मलहम लगाते हैं और फिर किसी ने मलहम लगा दी भी तो लांछन लगाने में देर नहीं लगती। यही कारण है कि स्त्री के नयन हमेशा नीर से भरे रहते हैं। चारों ओर की परिस्थितियों ने मुझे यह लिखने की प्रेरणा दी है। किसी को आहत करना मेरा उद्देश्य नहीं है। मैं आशा करती हूं कि लोग स्त्री के मर्ग को समझने का प्रयास करेगे।
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