मूलतः बांदा (उत्तर प्रदेश) में जन्मेमध्यप्रदेश में पलेबढ़े एवं शिक्षित हुए तथा 2021 में वन विभाग की सेवा से निवृत्त हुए श्री रत्नदीप खरे अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित रचनाधर्मी हैं. उनकी रचनाधर्मिता 1974 से कागज़कलमदवात और लिफ़ाफ़ों के ज़माने से लेकर अब तक अनवरत जारी है. श्री खरे ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं जैसे गद्य में कहानीव्यंग्य परिचर्चा एवं काव्य में मुक्तकनज़्मगीत और ग़ज़ल में सृजन किया है किंतु बहुतायत गीत और ग़ज़ल की रही है. नेह निमंत्रण नागफ़नी के श्री रत्नदीप खरे की चौथी काव्यकृति है जो गीतों और ग़ज़लों का संकलन है. यह संकलन आमजन की बौद्धिक चेतना का दस्तावेज़ कहा जा सकता है. जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है कि गेंदाजुहीगुलाब तो सुकुमारिता के प्रतीक हैं लेकिन कृतिकार के द्वारा नागफ़नी का स्नेह स्वीकार किये जाने से स्पष्ट है कि ऐसा स्नेह वास्तविकता के धरातल का परिपक्व स्नेह होगा न कि सतही. लेखक ने भावाभिव्यक्ति के लिए साहित्य की दो सर्वाधिक प्रचलित विधाओंगीत और ग़ज़ल को माध्यम बनाया है. दोनों विधाओं की उनकी रचनाओं में लयात्मकता बहुत आकर्षित करती है और निर्बाध पढ़ते जाने के लिए बाध्य करती है. गीत का उद्गम संस्कृत के गीति से हुआ है जिसका आशय हृदय की रागात्मक वृत्तियों का उस सीमा तक पहुँचना है जिसके आगे कोई राह नहीं. ये रागात्मक वृत्तियाँ मन की वो कोमल वृत्तियाँ होती हैं जिनमें भावनाओं का अछोर अमाप सांगोपन होता है और वे अपने प्रकटीकरण के लिए उपादान तलाश करते हुये स्वयं में ही लय हो जाती हैं इसीलिए गीत साहित्य की सर्वाधिक मनोरम विधा है. ग़ज़ल की बात की जाये तो ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ ही है मीठी बातें और ग़ज़ल अब रुमानियत के दायरे से बाहर आकर ऐसी विधा बन गई है जो दो पंक्तियों के कलेवर में बड़े बड़े अर्थ समाये रहते हैं.कुल मिलाकर रत्नदीप खरे ने अपने इस संकलन में ख़ुशहाल दुनिया का सपना साकार किया है जिसमें मानवता और मनुष्यता का भाव सर्वोपरि है.संग्रह की एक खूबीउसमें व्यंग्यपरक रचनाओं का समावेश हैं. वर्तमान समय की विसंगतियों को इतनी मीठी चाशनी में डुबोकर परोसना रचनाकार के स्वानुभूत खटास मिठास का उच्चीकरण कहा जा सकता है.
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