15 अगस्त 1947 को देश स्वाधीन हुआ। उसके पश्चात देश के जनमानस की यह स्वाभाविक इच्छा थी कि अब देश में किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक सोच को शासकीय स्तर पर प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर पूर्णविराम लगेगा और देश को साफ सुथरी व्यवस्था देकर कानून के समक्ष सभी की समानता को राष्ट्रीय आम सहमति मानकर आगे बढ़ने का संकल्प लिया जाएगा। परंतु कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति समाप्त नहीं हुई। इतना ही नहीं कांग्रेस की देखा देखी अन्य धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण को अपनाना आरंभकर दिया। उसी का परिणाम है कि मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर आज भी देश में वही सब कुछ हो रहा है जो आजादी से पहले होता रहा था।<br>प्रश्न है कि इस प्रकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के पीछे आखिर किसकी सोच रही ? जब इस प्रश्न का उत्तर खोजा जाता है तो नेहरू जी की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' इस सारे झगड़े की जड़ है। जिसमें नेहरू जी ने मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर मुगलों का भी तुष्टिकरण करने का कार्य किया है।<br>जब नेहरू जी ऐसा कर रहे थे तो उन्होंने अपने सभी इतिहास नायकों की पूर्णतया उपेक्षा कर डाली थी। बस इतिहास की इसी गुत्थी को सुलझाने और स्पष्टता से उसे सबके समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य द्वारा अपनी इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।<br>डॉ. आर्य का साहित्य लेखन पूर्णतया राष्ट्र परक होता है। उनका प्रयास रहता है कि उनकी प्रत्येक पुस्तक राष्ट्र बोध इतिहास बोध संस्कृति बोध और धर्मबोध कराने वाली हो। जिससे आजादी पूर्व के सांप्रदायिकता के भूत को समझने में वर्तमान पीढ़ी को सहायता प्राप्त हो सके।<br>अभी तक 80 से अधिक राष्ट्रपरक पुस्तकों का लेखन कर चुके डॉ राकेश कुमार आर्य की यह पुस्तक निश्चय ही वर्तमान भारत की युवा पीढ़ी को वह सब कुछ बताने में सफल रहेगी जिसे इतिहास के नाम पर इतिहास का ही सत्यानाश करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने लिखकर भारतीय इतिहास की परंपराओं को शीर्ष आसन कराने का प्रयास किया था...। पुस्तक निश्चय ही इतिहास के जिज्ञासु विद्यार्थियों के लिए एक प्रमाणिक दस्तावेज है। इसके अध्ययन से उन्हें कई ऐसे तथ्यों की भरपूर जानकारी मिल सकेगी जो अभी तक उनकी दृष्टि से ओझल रहे हैं।
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