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About The Book
Description
Author
एक ज़रूरी पुस्तक जिसे लाज़िमी तौर पर पढ़ा जाना चाहिए...स्वयंसेवी संगठनों और दाता एजेंसियों का विश्वव्यापी संजाल एक ख़तरनाक साम्राज्यवादी कुचक्र है। आज यह तथाकथित “मुनाफ़ा रहित थर्ड सेक्टर” एक भूमण्डलीय मकड़जाल के समान पसर चुका है और विश्व पूँजीवाद के एक प्रभावी सुरक्षाकवच के रूप में काम कर रहा है।तीसरी दुनिया के देशों में विकास और जनकल्याण के नाम पर ग़ैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) या स्वयंसेवी संगठन (वॉलण्टरी ऑर्गेनाइज़ेशन) नाम से जानी जाने वाली गतिविधियों का स्वरूप जितना व्यापक और बहुआयामी हो गया है उतना पहले कभी नहीं था। लुटेरी साम्राज्यवादी कॉर्पोरेशनों का हित साधने और पूँजीवाद के दामन पर लगे ख़ून के धब्बों को ढाँकने-छुपाने का काम करते हुए स्वयंसेवी संगठन व्यापक जनता में भ्रम पैदा करने के साथ ही उसके हर विरोध को व्यवस्था की चौहद्दी में क़ैद करने के लिए छद्म व्यवस्था-विरोध का कुचक्र रच रहे हैं और क्रान्तिकारी विरोध के संगठित होने की प्रक्रिया पर प्रभावी चोट कर रहे हैं। सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक आन्दोलनों और अकादमिक गतिविधियों में ये एन.जी.ओ. गहरी पैठ बना चुके हैं। दूसरी ओर इनकी ख़तरनाक भूमिका के सभी आयामों को पूरी गम्भीरता से समझने वाले लोग कम ही हैं। आम जनता और बुद्धिजीवियों में ही नहीं क्रान्तिकारी आन्दोलन के दायरे तक में इनको लेकर ग़लत समझदारी का भ्रम बना हुआ है। इस पुस्तक में स्वयंसेवी संगठनों के बारे में जोन रोल्योव्स जेम्स पेत्रास सी.पी. भाम्बरी आदि विद्वानों के लेख शामिल हैं तथा महत्वपूर्ण सम्पादकीय लेख के अलावा अन्य ज़रूरी लेख शामिल हैं।