Nirakar - Kul Mul Lakshya - Form of The Formless (HINDI)
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About The Book

हम अपना जीवन यूँ ही गुजार देने के लिए नहीं आए हैं बल्कि कुल-मूल लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें जीवन मिला है। कुल-मूल लक्ष्य यानी पृथ्वी लक्ष्य। इसे प्राप्त करने के लिए सत्य की प्यारी खोज अनिवार्य शर्त है। जिस प्रकार समुद्री सीप को मोती पाने के लिए, हंस को उस मोती को चुगने के लिए और चातक को प्यास बुझाने के लिए सिर्फ बारिश की बूँदों का इंतजार रहता है। उसी प्रकार ज्ञान से परे तेजज्ञान को प्राप्त करने के लिए ऐसे ही त्याग की अपेक्षा की जाती है। यह तेजज्ञान निराकार की अनुभूति से प्राप्त होता है। प्रेम, आनंद और मौन की अभिव्यक्ति ही निराकार के गुण हैं।इस पुस्तक में इसी विषय को केंद्रित कर अज्ञानता के पथ पर भटके लोगों को कुल-मूल लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग दिखाया गया है। मुख्य रूप से पॉंच खण्डों में विभक्त इस पुस्तक द्वारा निराकार के आकार से लेकर महाशून्य, स्वज्ञान की विधि तथा ब्रह्माण्ड के खेल तक पाठकों को विचरण कराया गया है।इस पुस्तक के नियमित अध्ययन से निराकार की संतुलित समझ और समर्पण तथा संकल्प की भावना मजबूत होती है। सरश्री के प्रवचनों का यह संकलन समझ (प्रज्ञा) की शक्ति जाग्रत करने की एक सफल कुंजी है।सरश्री - अल्प परिचयसरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अ‍ॅण्ड सन्स इत्यादि।
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