निर्मल वर्मा आधुनिक हिंदी कहानी के उन बिरले कथाकारों में से हैं जिनकी प्रायः हर रचना कालजयी व लोकप्रिय रहती आई है। उनकी प्रसिद्ध एवं अतिप्रसिद्ध कहानियों में से केवल कुछ को इस संकलन के लिए रख पाना एक चुनौती थी और इसे अंजाम दिया लेखकपत्नी एवं स्वयं लेखिका गगन गिल ने।निर्मल वर्मा को युवा पाठकों का भरपूर प्रेम मिला है और प्रौढ़ पाठकों का भी। वे आधुनिक भारत के उन थोड़े से लेखकों में हैं जिन्हें अंग्रेजीदाँ लोगों ने भी उसी चाव से पढ़ा जितना कस्बाई पाठकों ने। दार्शनिकों साधकों और रंगकर्मियों ने उतना ही जितना रेस्तराँ के बैरों पुलिसकर्मियों और कबाड़ीवालों ने। निश्चित ही कुछ आत्मबिंब उन सब पाठकों को इस लेखन में मिलते होंगे। यह संग्रह उन्हीं भिन्न छवियों को प्रस्तुत करने की चेष्टा है।अकेलेपन और अलगाव से रँगे इस संसार में कई पात्र इन कहानियों में मिलते हैं-ज्वरग्रस्त बच्चे नाराज बूढ़े बेरोजगार नौजवान एकालाप करती स्त्रियाँ और पुरुष। जैसे वे सब किसी संधिस्थल पर रह रहे हों-न भीतर न बाहर-किसी दहलीज पर।आशा है यह पुस्तक सुधी पाठकों की साहित्यिक प्यास जगाएगी और बुझाएगी भी।