17 नवम्बर 1962 का दिन भारतीय फौजों के लिए एक ऐतिहासिक दिवस है। इस दिन हली बार भारतीय फौजों ने चीन की आक्रामक सेना को भारी जन-धन की क्षति पहुंचांगी थी उसके 300 से भी अधिक सैनिक इस दिन नूरानांग (तवांग) में मार ढाले गये तथा आग उगलती मशीनगन को अपने साथी सिपाही गोपालसिंह के साथ सिर्फ हथगोलों की सहायता से चुप कराकर जसवंत सिंह रावत मशीनगल को छीनकर लाने में भी सफल रहा था। यद्यपि वापसी में अपने बंकर में पहुंचने से पहले ही सिर पर गोली लगने से इस आवांज की रहलीला समाप्त हो गयी किन्तु यदि चीन का 1962 मे और आगे बढ़ना रूक गया तो उसका श्रेय 17 नर 1962 के इस नूरानांग समर को ही जाता है। तवांग मे जसवंत सिंह को आज भी मंदिर में जसवंत बाबा के नाम से पूजा जाता है। जहां पर कि उसकी आत्मा आज भी सीमाओं की रक्षा में साक्षात रूप से विद्यमान है। सेना के जवान जो के तवांग में ड्यूटीरत हैं वे इस आश्चर्यजनक यथार्थ के आज भी प्रत्यक्षदर्शी हैं। कि उसके जीवन पर प्रकाश डालने वाली सामग्री इस पुस्तक के अलावा अन्यत्र कहीं उपलब्ध रही। जिसके कारण ही यह कृति स्वयं में सर्वथा अलग से ही ढंग की है। इस कृति की असली रोचकता इसी तथ्य के सबसे है ।
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