समकालीन हिंदी समीक्षा के बारे में हमारे वरिष्ठ एवं युवा साथी शोधार्थी क्या सोचते हैं? इसी बात पर आधारित एक संपादित पुस्तक जिसका शीर्षक ओरहन है आप सभी पाठकों के बीच उपस्थित है। ओरहन शब्द के मूलभाव से इस पुस्तक का कोई लेना देना नहीं है लेकिन आज के दौर में युवा चिंतकों शोधार्थियों के बीच एक अच्छी-खासी बहस देखने को मिलती है। जिसमें शिकवे-शिकायत क्षोभ पीड़ा आदि से ज्यादा गहन आत्मविश्लेषण से आश्चर्यचकित कर देने वाले संवेदनात्मक ज्ञान से परिचालित तथ्यों की नक्कासी है। अतः पुस्तक का उद्देश्य उन बहसों को उभारने के साथ-साथ इन तमाम बहसों से एक सकारात्मक समझ तक की यात्रा विकसित करने का प्रयास है।
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