This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.क्या मनुष्य एक यंत्र है? इसमें ओशो कहते हैं-<br>मैं मनुष्य को लड़ता में डूबा हुआ देखता हूं। उसका जीवन बिलकुल यांत्रिक बन गया है। हम जो भी कर रहे हैं वह कर नहीं रहे हैं हमसे हो रहा है। हमारे कर्म सचेतन और सजग नहीं हैं। वे कर्म न होकर केवल प्रतिक्रियाएं हैं। यह मंजिल जीवन मृत्यु-तुल्य है। जड़ता और यांत्रिकता से ऊपर उठने से ही वास्तविक जीवन प्रारंभ होता है।<br>उस समय ओशों के इन शब्दों को पढ़ते ही लेखक के जीवन में एक झंझावत की शुरुआत हुई थी। यह सबसे पहला क्रांति-सूत्र था जो ओशो तक पहुंचने के लिए एक महासूत्र बन गया था। अगर आपने अभी तक ओशों की और कोई पुस्तक नहीं पढ़ी है और यह पहली पुस्तक आपके हाथ लगी है तो अपनी अनुभूति के आधार पर सावधान रहे क्योंकि यह आपके जीवन में महाक्रांति की एक चिनगारी सिद्ध होगी।यह एक आनंद की बात है हमारी विस्मृत हो रही धरोहर से ओशो ने हमारी आज की भाषा में हमारा एक बार फिर से परिचय करवा दिया है। जो आज तक संस्कृत में था पाली में था प्राकृत में था और दुरुह जिसकी टीकाएं-व्याख्याएं होती रही थी वह सारा ज्ञान सरल हिन्दी और अंग्रेजी में हमें ऐसी जीवंतता के साथ ओशो ने उपलब्ध करवा दिया है कि हम उसकी मौलिकता को छू सकते हैं उसकी ऊंचाई पर चढ़कर सांस ले सकते हैं उसकी गहराइयों में उतर सकते हैं।
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