जिंदगी को हर दार्शनिक अपनी तरह से परिभाषित करते हैं। जितना भी मैंने पढ़ा जाना मैं इसी नतीजे पर पहुंची कि जीवन को किसी खास परिधि में नहीं बांधा जा सकता। जीवन के लिए हम एक परिभाषा नहीं दे सकते। जीवन बहती धारा है जो उद्गम से लेकर अंत तक हर पल को छूती हुई निकलती है और वहां अपने निशान अंकित करती है। हर एक निशान एक कहानी है। कहते हैं किसी भी व्यक्ति के उंगलियों का निशान किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिल सकताउसी तरह हर व्यक्ति की कहानी लगती तो एक जैसी है लेकिन सब में कुछ ना कुछ अलग खासियत होती है।कहानियां लिखती हूं तो स्वाभाविक है कि मुझे कहानियां पढ़ने का भी शौक है। बहुत सी कहानियों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि यह मेरे जीवन के पलों को छू रही हैपरंतु पूरी कहानी मेरी जीवन की कहानी नहीं हो सकती। उन्हीं कहानियों का ताना बाना है यह पुस्तक
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