याद नहीं कि वर्तमान की किस प्रेरणा से किशोरावस्था की मित्रता अपनी सम्पूर्ण आद्रता के साथ याद आ गई और एक छोटी सी लहर की भांति बार-बार जीवन तट से टकराने लगी । बचपन की सखी के साथ देखा एक सपना जीवंत हो उठा कि हम अपनी रचनाओं के लघु संग्रह को एक पुस्तक का रूप देंगे I इस कल्पना ने ठहरे हुए कोरोना काल में इंद्रधनुषी रंग भर दिए मन अनेक अनुभवों का कोहरा व उजास ले कर आत्म चेतना की घाटी में उतरता चला गया; जहाँ सुख-दुख पीड़ा अनुराग एक पूर्व परिचित की भांति साथ चल दिये अपने-अपने हिस्से का चिंतन लेकर I
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