जीवन की प्रथम अनुभूति प्रेम ही है। जीवन से मृत्यु तक प्रत्येक जीव इस अनुभूति को अपनी क्षमतानुसार अधिकाधिक संचित कर लेना चाहता है। यही प्रेम हमें लौकिक पारलौकिक दोनो ही जगत में सुदृढ करने की क्षमता रखता है। सारा ज्ञान दर्शन नीतिप्रेम में समाहित है। बस यह हम पर निर्भर है कि इस प्रेम धारा में हम कितना डूब पाते हैं। कहा भी गया है-'जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार'बस इसी प्रेम के विविध रूपों और अनुभवों को आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए आप सबके प्रेम आशीर्वाद व सुझाव की आकांक्षी हूँ।
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