कविताएं बोलती हैं भावना के विभिन्न रूपों में शब्दों की नाव चढ़ तिरती रहती हैं मन की नदी में उतराती तरंगोंइस पुस्तक का पहला पन्ना प्रेरणा का द्वार खोलता है वहीं अंतिम पृष्ठ सुकून देता है। प्रस्तुत कविताऐं अनुभवों को भागीदार बना साथ साथ चलती हैं वहीं सार्थक निर्माणों की ओर प्रेरित करती दीखती हैं । समय रिश्ते असमंजस हर मोड़ के धरातल पर संवेदना के साथ खड़ी ये कवितायें आत्म संतुष्टि देती हैं।दूब हूं मैं चट्टानों पर उगना मेरी फितरत है नहीं डरती आंधियों से नहीं झुकती बरगद को देखकर मैं दूब हूं हरी हरी- आशा करण
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