PAIMANA E ZINDAGI - NEELAM SAXENA CHANDRA

About The Book

जब ज़िंदगी का पैमाना नापने जाओ तो पता चलता है कि इसका कोई स्थाई रूप ही नहीं होता| यह तो हमारे ज़हन के अहसासों पर होता है कि ज़िंदगी के पैमाने को बड़ा कर दे या छोटा कर दे| कभी यह नीले आसमान सी बड़ी हो जाती है तो कभी यह तिनके की तरह छोटी| यदि ध्यान से देखा जाए तो यह रूह ही है जो ज़िंदगी के पैमाने को तय करती है| पेश हैं नीलम सक्सेना चंद्रा और रेणु मिश्रा की पचास कवितायें जो आप की रूह को छू जायेंगी।
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