Panchal Sangrahalaya ki Guptakalin Kalakritiya

About The Book

प्राचीन भारतीय इतिहास में गुप्तकाल समृद्धि तथा विकास का काल था। इस काल मंे कुशल प्रशासनिक नेतृत्व होने के कारण राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के परिणामस्वरूप सांस्कृतिक विकास सम्भव हुआ। सांस्कृतिक विकास के अन्तर्गत विविध कलाओं का विशेष योगदान दिखाई देता है। इन कलाओं में प्रमुख रूप से मूर्तिकला चित्रकला धातुकला तक्षण कला आदि का महत्वपूर्ण स्थान है। गुप्तकाल भारतीय संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में नवीन अवधारणाओं एवं मानकों की स्थापना का युग भी कहा जा सकता है जिसमें कला क्षेत्र की नवीन तकनीकों तथा कला शैलियों का उद्भव एवं विकास हुआ। गुप्तकालीन मूर्तिकला की विभिन्न कला शैलियों में गान्धार कला शैली मथुरा कला शैली सारनाथ कला शैली पाटलिपुत्र कला शैली तथा कौशाम्बी कला शैली प्रमुख है तथा प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में इन शैलियों में निर्मित मूर्तियों की कलात्मक विशेषताएँ भी दी गयी हैं। प्रस्तुत शोध में गुप्तकाल में विभिन्न कला शैलियों में निर्मित मूर्तियों के मध्य सम्बन्ध एवं परस्पर प्रभाव को विश्लेषणात्मक रूप से दिखाने का प्रयास भी किया गया है।
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