मेरी कम-ओ-बेश चालीस नज्में और कई ग़ज़लें हिन्दी ज़बान का लिबास पहनकर आपके सामने हैं। इन नज्मांे में आपको मैं मिलूँगी। औरत मिलेगी। ये नज्में एक आईना हैं। इनमें आपको समाज का अक्स भी मिलेगा और इश्क़ का धमाल भी। कहीं पर मैंने अपनी तन्हाई को लिखा है और कहीं पर उस शोर को जो मेरे अंदर ही कहीं मौजूद है और मुझे तन्हा नहीं होने देता। ये शायद पाकिस्तानी और हिन्दुस्तानी औरत का मुश्तर्का अल्मीया है कि औरत का कोई घर नहीं होता वो हमेशा चार रिश्तों की मुहताज रहती है बाप भाई शौहर और बेटा। - पुस्तक की भूमिका से हुमैरा राहत पाकिस्तान की जानी-पहचानी लेखिका हैं जिनकी अभी तक शायरी की तीन पुस्तकें छप चुकी हैं। इन्हीं में से उनकी चुनिंदा नज्में और ग़ज़लें इस पुस्तक में शामिल हैं। शायरी के अलावा वे उपन्यास और कहानियां भी लिखती हैं जिसके लिए उन्हें अनेक सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। हुमैरा राहत कराची में रहती हैं और एक स्कूल में पढ़ाती हैं। अपने शौहर इरफान अहमद खान के साथ दक्षिण एशिया में सूफी खयालात कला साहित्य संस्कृति पर एक पत्रिका प्रकाशित करती हैं।
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