PANCHHI KO KYA PASAND HAI
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कभी कोई पंछी आया था-सपने में नहीं शब्दों के बीच। उसकी चोंच में एक कविता थी और आँखों में एक ऐसा प्रश्न---जिसका उत्तर मैंने कभी नहीं लिखा। वो पंछी उड़ता नहीं था। फिर भी आकाश कांपता था। पिंजरे में था लेकिन उसकी छटपटाहट कैद नहीं एक रहस्य थी। मैंने उसे कभी ‘स्त्री’ कहकर नहीं पुकारा पर हर बार वह एक स्त्री की तरह ही टूटा और फिर जुड़ता गया।क्या पसंद है उस पंछी को? शायद यही--- कि कोई उसे पूरी तरह समझ न पाए। ''पंछी को क्या पसंद है'' - उसी अधूरे उत्तर की एक लंबी गूंज है। -डॉ- संघमित्र राएगुरु
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