हमारे ऋषियों (वैज्ञानिकों) ने बहुत ही सुव्यवस्थित ढंग से मानव जीवन की सतत् उन्नति हेतु अनेक संस्कारों का प्रतिपादन किया है जिसके द्वारा मानव के शारीरिक मानसिक तथा आत्मविकास का मार्ग प्रशस्त होता है। संस्कार ही शरीरादि की शुद्धि करते हैं। मनुस्मृति का वचन है कि- वैदिकैः कर्मभिः पुण्यैर्निषेकादिर्द्विजन्मनाम्। कार्यः शरीरसंस्कारः पावनः प्रेत्य चेह च॥ मानव के गर्भाधानादि संस्कार वैदिक रूप से ही सम्पन्न होने चाहिए। क्योंकि संस्कार ही इस लोक तथा परलोक में पवित्र करने वाले हैं। हिंदू-संस्कृति में विवाह मानव जीवन का सबसे प्रमुख संस्कार है। विश्व के अनेक भूभाग में विवाह मात्र एक समझौता है परन्तु हमारे सनातन धर्म में गृहस्थाश्रम हमारा जीवन दर्शन है। इस संस्करण में इसी दर्शन को समझने का प्रयास किया गया है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.