पिंजरे की ज़िदगी कैसी है? अगर पिंजरे के तोते की जगह हम बंद हों तो ज़िदगी भर क्या विचार आयेंगे? अगर हम पिंजरे में बंद हैं तो भी इंसानों के बीच में रहेंगे और कभी कभार अपनों से तो मिल ही लेंगे। लेकिन एक पक्षी जो पिंजरे में बंद है कभी अपनी ज़िदगी में वापस नहीं जा पाता न ही कभी अपनों से मिल पाता है और न ही कभी अपने पसंद का खाना खा पाता है और तो और पूरी ज़िदगी अपने पंखों को फैला तक नहीं पाता है। अलग-अलग परिस्थितियों में एक तोता जो आपके या आपके पड़ोस में कहीं पिंजरे में बंद है वो क्या सोचता होगा। यह काव्य संग्रह इस पर ही आधारित है।
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