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About The Book
Description
Author
हर इनसान के जीवन में सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं परंतु आज भी विश्व की आधी आबादी शाश्वत दर्द झेल रही है। लेखिका कई महिलाओं से रू-ब-रू हुई और लगा कि बहुत कम ऐसी महिलाएँ हैं जिनके जीवन में अंधकार के बाद सूर्य की किरण दस्तक देती है। परिवार वाले लड़कियों को लक्ष्मी कहते हैं पर यह वह लक्ष्मी है जिसे माता-पिता अपने घर में नहीं रखना चाहते हैं—उनका कहना है कि इसकी सुरक्षा पति ही कर सकता है। यह विवाह नहीं उनके लिए खेल होता है। खेल-खेल में ये लड़कियाँ माँ बन जाती हैं—कभी माँ जिंदा रह जाती है कभी बच्चा। माँ के नहीं रहने पर पिता की फिर शादी हो जाती है; उस बच्चे के लिए परिवार वाले कहते हैं—खाता-पीता रहे; मतलब बालक और पशु में ज्यादा अंतर नहीं रहता है। प्रश्न यह उठता है कि उस महिला को इतने बड़े परिवार में कोई भी इतना विश्वसनीय नहीं लगता है जो उसके बच्चों का संबल बन सकेगा। नारी की पीड़ा और व्यथा की मार्मिक अभिव्य€त है यह पुस्तक जो पाठकों की संवेदना को जाग्रत् कर देगी और भीतर तक आंदोलित-उद्वेलित भी।