PANKSHI AKELA ( पंक्षी अकेला )


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About The Book

पंछी अकेला - सीताकांत महापात्र पद्मभूषण - पद्मविभूषण से सम्मानित ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त ओड़िआ कवि डॉ. सीताकांत महापात्र का नाम उन थोड़े से नामों में से एक है जिनके समकालीन भारतीय कविता की बहुरंगी तस्वीर बनती है। हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह के अनुसार- “सीताकांत महापात्र ओड़िआ से ज्यादा हिंदी के अपने कवि हो चले हैं। आधुनिक भारतीय कविता के संदर्भ में सीताकांत बांग्ला के आद्य आधुनिक कवि जीवनानंद दास से जुड़ते प्रतीत होंगे जिनका काव्य रवींद्र के बाद बांग्ला में बिल्कुल नया मोड़ था।’’ ‘पंछी अकेला’ सीताकांत महापात्र का हिंदी में अनूदित बीसवाँ और अद्यतन काव्य-संग्रह है। इनमें पचास कविताएँ संगृहीत हैं। उम्र के चौरासीवें पड़ाव पर पहुँचकर कभी अकेले रह जाने की बात करता हैः ‘स्नायु शिरा – प्रशिराओं रक्त मास अस्थि से बना/ बहुत सुंदर पिंजरा पीछे छूट जाएगा/ तू अकेला ही रह जाएगा/ एक न एक दिन।’ कवि को यह विशाल जगत एक पिंजरा लगता है। वह इसी पिंजरे को छोड़कर चले जाने की बात करता है। देश-विदेश की अनेक घटनाओं। दुर्घटनाओं से आहत कवि सीताकांत महापात्र ने अकेले में कई अद्भुत कविताएँ लिखी है। यह कविताएँ पाठकों को झकझोरकर रख देंगी। ऐसे ही कुछ कविताएँ हैः मौत बेहद करीब थी खुली आँखे अनाम मृत्यु शिशु की वियतनाम की वह छोटी लड़की टिआऩमेन- बिजिंग दो लटकते शव और पाताल में उनसठ दिन इत्यादि। सीताकांत महापात्र छोटे छोटे शब्दों में बड़े-बड़े दृश्य फलक आँकने में सिद्धहस्त है। इसीलिए हिंदी के प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने सीताकांत महापात्र को ‘समय और शब्द’ का कवि कहा हैः ‘समय को शब्द और शब्द को समय में बदलना ही इस कवि की काव्य साधना है।’ इसकी एक छोटी-सी बानगी संग्रह की ‘माँ वाराणसी’ कविता में देखी जा सकती हैः ‘नाव में पतवार चला रहा है। नाविक/ तू गंगा को देख रही है/ मैं तुझे देख रहा हूँ। सोच रहा हूँ तू क्या सोच रही होगी. गंगा की धार/ किनारे अधजले शवों से उठता गंगा की धार किनारे और जले शवों से उठता धुआँ/ सब एक साथ मिल रहे थे।’ ‘पंछी अकेला’ की कविताओं की एक अन्य विशेषता कवि की उस बेचैन कोशिश में देखी जा सकती है। जहाँ वह जीवन की परिचित सच्चाईयों में छिपे मूलभूत प्रश्नों से टकराता सा जान पड़ता है। अपने इन गुणों के कारण डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र द्वारा ओड़िआ से हिंदी में अनूदित उनके इस चौदरवें काव्य-संग्रह की कविताएँ हिंदी के वृहत्तर पाठक-समुदाय को निश्चित ही आकृष्ट करेंगी।.
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